रविवार, 4 जुलाई 2010

है हिम्मत? नहीं न।

Small price paid today, will reap big benifits tomorrow. "BHARAT BANDH IS NOT A SOLUTION"
यह विज्ञापन है भारत सरकार के पैट्रोलियम और गैस मंत्रालय का। और इधर तमाम राजनीतिक पार्टियों द्वारा भारत बन्द का आवाहन भी। आप भूल जाइये कि आपका कुछ भला होने वाला है। बन्द एक ताक़त के रूप मे इस्तमाल करने वाला हथियार है और जब उस बन्द के जवाब में सरकार ही यह पत्थर की लक़ीर वाला फैसला ले ले तो बताइये आपके बन्द का मतलब क्या? आप कौनसी और किसको अपनी ताक़त दिखा रहे हैं? और यह ताक़त दिखा कौन रहा है? एक राजनीतिक पार्टी कीमतें बढा रही है, दूसरी पार्टी उसका विरोध कर रही है। जनता सिर्फ और सिर्फ दोनों की गतिविधियों को ताक़ रही है। इसमे कौन किसका भला कर रहा है? दिमाग पर जोर डाल कर देखें तो बन्द महज़ एक नाटक है। या नाटक बन कर रह जाने वाला है क्योकि इसमे जनता का कोई योगदान दिख रहा है, बिल्कुल नहीं लगता। पार्टियां बन्द करा रही है। पार्टियों के अपने कार्यकर्ता हैं वे सडक पर उतरे हैं या उतरेंगे..जनता तमाशा देख रही है, कभी बन्द को कोसती है कभी सत्ता को। अफसोस यह है कि जनता सडक पर उतरने की हिम्मत नहीं दिखाती। और यही वजह है कि जब बन्द का आवाहन होता है तो सरकार एक दिन पूर्व तमाम अखबारो आदि में विज्ञापित कर देती है कि हम मानने वाले नहीं है, विरोध फिज़ूल है। बताइये जब वो मानना ही नहीं चाहती तो आपकी पार्टी आखिर क्या बिगाड लेगी? यही न कि जनता के सामने जनता के लिये लडने का प्रदर्शन होगा और इस प्रदर्शन के बाद सरकार फिर कोई तुनतुना जनता को पकडा देगी, जनता फिर चुप। पार्टियों के अपने अपने काम बन जायेंगे। बस्स....। मुद्दा सिर्फ महंगाई का नहीं है। आज जनता के सामने ढेर सारी समस्यायें हैं और यकीन मानिये एक भी समस्या हल होती नहीं दिखती। दिखता है राजनितिक दंगल। आप जानते हैं यह सब क्यों होता है, आप जानते हैं कि यह सब इसलिये होता है क्योंकि आपमें ताक़त नहीं है लडने की। संघर्ष करने की। आपको बैठे बैठे सब मिल जाये या बैठे बैठे समस्यायें हल हो जाये, यही चाहिये, और यही चाहत सत्ता में बैठे या विरोध में बैठे राजनैतिक कलाकारो की ढाल है। खुद मूर्ख बनते कैसे हैं यह भारत की जनता से अच्छा उदाहरण कहीं ओर देखने में नहीं आयेगा। देखने में आयेगा, बन्द, पुलिसिया लाठी चार्ज, सरकारी बयान, विरोधी पार्टियों के प्रतिउत्तर, फिर चैनलों पर टीका टिप्पणियों वाले टॉक शो....., अखबार रंगे होंगे समाचारों से। आप सुबह अपने घर बैठे चाय की चुस्कियों का लुत्फ उठाते हुए उसे पढेंगे..गली-मोहल्ले, पान की दुकानों आदि पर गपशप करेंगे इन सब क्रियाकलापों की बातें..और रात घर आयेंगे चादर तान कर सो जायेंगे..या बहुत हुआ तो अपने विचार रख देंगे इस पर......। उफ्फ कितनी निरीह जनता.....। और इस जनता का में भी एक हिस्सा हूं...शर्म आती है। शर्म आती है नेताओं के हाथों की कठपुतली बनी जनता का नाच देखते हुए।
क्रांति..........। क्यों हिम्मत नहीं होती न इस शब्द को साकार करने की? मुझमे भी नहीं है। इसलिये कि मैं भी आपकी तरह भारत के 21 वीं सदी का होनहार युवक हूं जिसे "ऐसा तो होता रहता है रोज़...", कह कर निकल जाने की आदत है। या " ऐसा नहीं होना चाहिये" जैसे विषयों पर खूबसूरती से बयान आदि देने की महारथ है।