सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

कलाकार यानी?

पिछले दिनों जब टीवी शो 'बिग बॉस' शुरू हुआ तो इसमे दो पाकिस्तानी कलाकारों को लेकर महाराष्ट्र की दो पार्टियों नें विरोध प्रदर्शन किया। इसके पहले भी ऐसा हो चुका है जब पाकिस्तानी कलाकारों के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं। विरोध प्रदर्शन कानून रोक देता है। वो रुक जाता है। मगर पाकिस्तानी कलाकारों का आना बद्स्तूर जारी है। इस मुद्दे पर बहस-मुबाहस भी काफी हो चुकी है। और अब सबके मुंह बक बक करके थक से गये हैं। किंतु निष्कर्ष नहीं निकला कि क्या सही है और क्या गलत? मैं फिर से यह मुद्दा उछाल रहा हूं और यह खोजने की कोशिश कर रहा हूं कि आखिर सही कौन है? वो जो पाकिस्तान से कलाकार आयात कर रहे हैं या वे जो इसका विरोध कर रहे हैं या फिर वे लोग जो बक-बक कर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं? हालांकि लब्बोलुआब यही है कि सबके धन्धे चल रहे हैं। किंतु बावज़ूद इसके..कुछ तो है जो नहीं होना चाहिये। वो क्या नहीं होना चाहिये? शुद्ध भारतीय मानसिकता की नज़र तो यही कहती है कि हमे पाकिस्तान से किसी कलाकार को आमंत्रित नहीं करना चाहिये। क्यों? क्योंकि पाकिस्तान में भारतीय कलाकारों पर अघोषित बैन हैं। क्योंकि पाकिस्तान भारत की रीढ में घुस कर हमला करने की मानसिकता रखता है। क्योंकि आज के ऐसे हालात नहीं हैं जो इन दो देशों के बीच किसी गैरराजनीतिक तरीकों से दोस्ती का तर्क दे सकते हों। क्योंकि हम ही इतने उतावले क्यों होते रहें? अब कलाकारों को इस लिहाज़ में शामिल नहीं करना चाहिये, ये दलीलें होती हैं। किसकी? कलाकारों की, कुछ राजनीतिक दलों की, कुछ अति बुद्धिजीवियों की..। सोचिये यदि हम घोषित तौर पर बैन लगा देते हैं तो क्या बिगड जायेगा? वोट बैंक। दुनिया को दिखाया जाने वाला ढोंग। राजनीतिक पार्टियों का संतुलन। रीयलीटी शो वालों का हिसाब-किताब। न्यूज चैनल वालों की टीआरपी। और यह सब बाज़ार को प्रभावित कर देने वाला होगा। आइये अब पाकिस्तान पर नज़र करें- विस्फोटों और आतंक से लगभग बदहाल हो चुके इस देश में कला, संस्कृति, खेल आदि की वाट लगी हुई है। ऐसे में भारतीय कलाकारों के जरिये वे लाखों-करोडों के वारे-न्यारे कर सकते हैं, बिगडी हुई अर्थ व्यवस्था को पटरी पर ला सकते हैं..किंतु कट्टरता ऐसी है कि भारत से नफरत उनकी नसों में व्याप्त है। भूखे मरने की कगार वाले कलाकारों को अगर दुनिया में कोई पूछने वाला देश है तो वो भारत है..। बावज़ूद नमकहलाली की मानसिकता से परे पाकिस्तान में भारत..जानी दुश्मन की तरह है। इसलिये भारतीय कलाकारों, खिलाडियों या किसी शो-वो वाले माध्यमों पर वहां स्वचलित बैन है। अब लौट आइये अपने देश, हमारी क्या मजबूरी? क्या महज़ इस बाबत हम पाकिस्तानी कलाकारों को दूर रखें कि वहां हमारे कलाकारों के साथ सही बर्ताव नहीं होता या पाकिस्तान हमारे देश में आतंक फैलाने वाला देश है तो आखिर इसमे हर्ज़ ही क्या है? किंतु कमाई में हर्ज़ है। तो क्या सिर्फ कमाई के लिहाज़ से हम अपनी भावनाओं का कत्ल कर दें?
हां, यह भी मजेदार है जैसा कि हाल ही में बिग बॉस से बेघर हुई पाकिस्तानी कलाकार बेगम ने खुद को शांति दूत की तरह पेश किया। यानी शांति दूत की तरह आते हैं कलाकार। पर यह तो तब सम्भव है जब इन तथाकथित दूतों को वहां की सरकार कायदे से दूत बनाकर भेजती। भारत की ज़मीन पर शांति के दूत की बातें..क्या कमाई का हथकंडा नहीं लगता? अगर शांति की इतनी ही इमानदारी है तो पाकिस्तान में कभी ऐसा नज़ारा क्यों नहीं देखने मिलता कि वहां के तमाम कलाकार एकजुट होकर बैनर लेकर निकल पडे हो सडकों पर कि हमे भारत से प्यार है..शांति चाहिये। भाई, अपनी बुद्धि इस मसले पर कुछ समझ ही नहीं पाती है। और खोजने की कोशिश हर बार यहीं आकर टिक जाती हैं कि आखिर ये क्या लगा रखा है कि पाकिस्तान से कलाकार बुलाये जा रहे हैं? हमारे यहां कम पड गये हों ऐसा भी नहीं। अब आप सुझाइये..सही क्या है? क्योंकि फिलवक्त मुझे कई नज़रियों से अपना यही तर्क सही लग रहा है..। पर ऐसा भी कतई नहीं है कि आपका तर्क मैं टीवी शो वालों की तरह काटूं, या विवाद पैदा करूं। मैं कोई राजनीतिक पार्टी वाला बन्दा नहीं, न ही अतिबुद्धिजीवी वाला प्राणी। अदना सा दिमाग है दौड रहा है। सोच रहा है। बस्स।

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