सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

अमर ख्वाब

हालात आदमी को क्या से क्या बना देते हैं, यहां तक कि उसकी सोच और उसका विश्वास भी बदल जाता है। कल तक जो राजनीतिक मंच पर चमकता हुआ दिखता था, जिसकी बातों में सच्चाई भले न हो किंतु रस टपकता था, आज वो अपनी साख बचाये रखने तथा अपने आप को खडा रख पाने की जद्दोजहद में लगा है। हालात हैं। समाजवादी पार्टी से विलग कर दिये गये अमर सिंह ने लोकमंच नामक पार्टी का गठन किया था, इस गठन के वक़्त जितना शोर शराबा था वो धीरे-धीरे लगभग खत्म सा हो गया और अमर सिंह भी राजनीतिक हाशिये पर खडे दिखाई देने लगे। उनकी बातों में वो तेवर भी तैरते हुए किनारे लगने लगे जिनके दम पर अमर बाबु विख्यात थे। वैसे तो राजनीति एक ऐसा मंच है जहां सबकुछ डिस्काउंट में होता है। आपको जो बोलना है बोल दीजिये और दूसरे दिन उसका खंडन भी कर दीजिये..या अपनी बात से बिल्कुल मुंह फेर लीजिये, या फिर अडे रहिये और खडे रह कर तमाशा देखिये। सबकुछ छूट है। इस छूट का फायदा भी अमर सिंह ने खूब उठाया था। इन दिनों वे आत्ममंथन के दौर से गुजर रहे हैं शायद। क्योंकि उनके मुंह से निकलने वाले बयान कुछ इस तरह है कि "छोडो कल की बातें..कल की बात पुरानी...", अभी पिछले ही दिनों मुम्बई के अन्धेरी में उनकी प्रेसवार्ता हुई। अपने को पाकसाफ रखने की पुरानी आदत तो थी ही साथ ही मुम्बई में लोकमंच को यहां की दो सशक्त पार्टियों के साथ खडा करने की उनकी प्रेमभरी मंशा भी दिखाई दी। कभी शिवसेना या राज ठाकरे के खिलाफ बोलने वाले अमर सिंह आज उनसे दोस्ताना चाहते हैं। कारण स्पष्ट है..लोकमंच को मुम्बई में स्थापित होना है तो उसे शिवसेना और मनसे से मोहब्बत रखनी ही होगी। हालांकि अमर जितना भी चाह लें इन पार्टियों से उनका रिश्ता कभी पटरी पर बैठ नहीं सकता किंतु कोशिश जारी है। जो कभी अपने उत्तर-प्रदेश को विकास मार्ग पर ला कर खडा कर देने की बात करते थे आज वो ही कह रहे हैं कि उत्तरप्रदेश के पिछडने का कारण मायावती और मुलायम सिंह हैं। खैर..मुम्बई या महाराष्ट्र के विकास के मुद्दे पर उनकी वाणी में अब भारतीयता समाहित हो गई है। यहां तक कि उन्होने अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जनार्दन सिंह को हटा कर मराठी मानुस सुभाष बोंडे को नया प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। साथ ही उन्होने अपनी गलती भी स्वीकार कर ली कि मैं लाठी, फरसा जैसी रैली करने की बात नहीं करुंगा। कुलमिलाकर अमर सिंह पूरी तरह गांधीवादी के रूप में प्रकट होना चाहते हैं। और अपने पैरों को महाराष्ट्र में जमाना चाहते हैं। महाराष्ट्र में जमाने के पीछे भी कई सारे कारण हैं.., सपा से अलग होने के बाद बहुत से राजनीतिक सम्बन्ध भी टूटे हैं और पार्टी के आर्थिक तौर से भी वे पहले की तरह मजबूत नहीं रह गये हैं। बहरहाल, बीमारी के बावजूद वे 400 किलोमीटर की पदयात्रा करने वाले हैं। अलग पूर्वांचल की मांग को लेकर वे जनसमर्थन जुटाने वाले हैं। और इसके बाद वे विदर्भ की ओर नज़र करेंगे। उनका ख्वाब है कि इस तरह से वे अपनी खोई पहचान पुनः प्राप्त कर सकेंगे। किंतु जानकार मानते हैं कि अमर सिंह को पुनः खडे होने में वर्षों लग जायेंगे। मुम्बई जैसे महानगर में तो बस वे महज़ प्रेस कांफ्रेंस ही ले सकते हैं। रही बात उत्तरप्रदेश की तो यह सच है कि उत्तरप्रदेश में आज भी बहुत से हैं जो अमर सिंह के पक्ष को मज़बूत बनाते हैं। यह भी तय दिखता है कि अमर सिंह मायावती और मुलायम दोनों के लिये कांटे की तरह सबित हो सकते हैं, मगर यह तब जब अमर सिंह का आन्दोलन लगातार जारी रहे..। वे लगातार अपने लोगों के सम्पर्क में रहें और जनसमर्थन जुटाने की अलग-अलग विधियां आजमाते रहें। किंतु विदर्भ के रास्ते से वे सफल होना चाहेंगे तो..मुमकिन नहीं लगता कि उनका ख्वाब पूरा हो। अब वे जानें..उनकी रसभरी बातें जानें...। वैसे भी बिग बॉस में जाने की इच्छा और अगले जन्म में पत्रकार बनने की इच्छा उनके लुआबभरे वचन है जिनसे वे चर्चा में बने रह सकते हैं। तो इस अमर ख्वाब की नई गाथा देखने के दिन शुरू हो गये लगते हैं। आपको क्या लगता है?

5 टिप्‍पणियां:

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